बामसेफ का क्या अर्थ है?

BAMCEF संगठन के नाम का संक्षिप्त रूप है| उसका अर्थ Backward And Minority Communities Employees Federation इस तरह से है अर्थात् B-Backward (S.C., S.T., OBC) A-and, M-Minority, C-Communities, E-Employees, F-Federation| बामसेफ के संक्षिप्त रूप का यह विस्तार है जिससे संगठन के संपूर्ण नाम का पता चलता है| जैसे All India Backward (SC.,ST., OBC) And Minorities Communities Employees Federation यहॉ बैकवर्ड शब्द एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. के लिए समान रूप से प्रयुक्त किया गया है और इसका अर्थ है एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. की सभी जातियॉ पिछड़ी (Backward) हैं| इसका अर्थ यह नहीं है कि एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. समान रूप से पिछड़ी जातियॉ हैं| यह जातियॉ समान रूप से पिछड़ी नहीं है| कुछ ज्यादा पिछड़ी हैं और कुछ कम पिछड़ी हैं, मगर है सभी पिछड़ी, इसीलिए इन जातियों को बैकवर्ड (पिछड़ी) ही कहा गया है| जहॉ तक अल्पसंख्यकों का सवाल है, हम एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. से धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यकों को इस दायरे में मानते हैं, यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि, ऐतिहासिक काल में एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. से ही अल्पसंख्यकों का वर्ग बना है, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, बोद्ध, सिख समुदाय आते हैं, इस तरह से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी वर्ग और उनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यक को ही हम संगठित करना चाहते हैं|

समस्यात्मक दृष्टिकोण

हम अनु. जाति, अनु. जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक को ही क्यों संगठित करना चाहते हैं, उसके वास्तविक कारण उपलब्ध हैं| समस्यात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो आज यह वर्ग सबसे ज्यादा समस्याग्रस्त है| उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षणिक समस्यायें गंभीरतम रूप में प्रकट हो चुकी हैं और अब यह समस्यायें विवाद का विषय नहीं रही| भारत सरकार के साथ-साथ विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय ने भी इस बात को मान्यता प्रदान की है|अनु. जाति, अनु. जनजाति के लिए स्वयं भारत सरकार ने अनुसूचित जाति जनजाति आयोग की स्थापना की और उसे संवैधानिक स्तर प्रदान किया| इससे इस वर्ग की विशेष समस्याओं की मान्यता, स्वयं भारत सरकार मानती है, यह इसका प्रमाण है| स्वयं भारत सरकार ने अनु. जाति, अनु. जनजाति के अलावा जिन जातियों को शासन और प्रशासन में प्रतिनिधित्व को सुरक्षित करने के लिए मंडल कमीशन की नियुक्ति की और इस कमीशन की रिपोर्ट को मान्यता प्रदान की है जिसको १६ नवम्बर १९९२ को भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी इस बात को मान्यता दी है| भारत सरकार के माध्यम से और विभिन्न राज्य सरकारों के माध्यम से अल्पसंख्यकों के हक और अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए विशेष अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया है, जिसके माध्यम से इनकी समस्याओं का निदान किया जायेगा| आयोगों के गठित करने से अब इस बात में किसी तरह का विवाद नहीं बचा रहता है कि इनकी कुछ विशेष समस्याये हैं| यह समस्यायें सर्वमान्य हो चुकी हैं|

व्यवस्थात्मक दृष्टिकोण

व्यवस्थात्मक दृष्टिकोण से देखा जाय, तो अनु. जाति, अनु. जनजाति, अल्पसंख्यक वर्ग इस देश की ब्राह्मणवादी समाज व्यवस्था से गंभीर रूप से पीड़ित हैं, इसलिये ज्योतिराव पुले, पेरियार रामासामी और डा. बाबासाहब आम्बेडकर ने अपने आंदोलन का लक्ष्य गैरबराबरी की समाज व्यवस्था में परिवर्तन करना रखा| इसलिए जो लोग इस व्यवस्था से पीड़ित हैं वही लोग व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन में सक्रीय सहभागी हो सकते हैं, और यह स्वाभाविक भी है| जिनको इस व्यवस्था से लाभ होता है उनको संगठित करने का कोई तर्क नहीं है| इसलिए गैरबराबरी की व्यवस्था को बदलने के लिए जो लोग इस व्यवस्था से पीडिात हैं, उनको ही संगठित करना होगा| इसलिए अनु. जाति, अनु. जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग को ही संगठित किया जा रहा है|

ऐतिहासिक दृष्टिकोण

२१ मई २००१ के टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में खबर छपी कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भारतीय नहीं है, विदेशी है| यह शोध अमेरिका के वाशिंगटन में उटाह विश्वविद्यालय है और उस उटाह विश्वविद्यालय की बायो टेक्नोलाजी डिपार्टमेंट के हेड, मायकल बामसाद ने डी.एन.ए के आधार पर यह शोध किया| यह शोध करने के लिए उन्होंने Anthropological survey of India और मद्रास विश्वविद्यालय, विशाखापटनम विश्वविद्यालय के बायो टेक्नोलाजी डिपार्टमेंट के लोगों के सहयोग से यह शोध करने का काम किया| इसलिए यह शोध पूर्वाग्रह से मुक्त है, यह बात पूर्णत: सिध्द हो गयी है| डी.एन.ए के आधार पर यह शोध निर्विवाद है| इस शोध को ब्राह्मणों ने विरोध न करते हुए इसको मान्यता दी| बल्कि कुछ ब्राह्मणों ने इसके आधार पर विदेशों में अपनी जड़ों को भी ढूॅढाना शुरू कर दिया उसमें प्रमुख नाम पूना के ब्राह्मण डा. जय दीक्षित का है| इस शोध के अनुसार रुस में जो काला सागर के पास का क्षेत्र है| उस युरेशियन विभाग में पाये जाने वाले लोगों का डी.एन.ए और भारत में रहने वाले ब्राह्मण लोगों का डी.एन.ए ९९.९९ प्रतिशत मिल गया है| इस शोध की वजह से भारत का जो लिखित इतिहास है उसका फिर से पुनर्लेखन करना जरुरी है| पुनर्लेखन किए बगैर अब इतिहास को नहीं माना जा सकता| इसलिए हमने इतिहास के पुनर्लेखन का निर्णय किया है| उपरोक्त निर्णय के अनुसार अगर फिर से इतिहास लिखा जाय तो ये लिखा जा सकता है कि युरेशिया में रहने वाले लोगों ने आक्रमण करने के मकसद से भारत में प्रवेश किया| कुछ लोग कहते हैं वे लोग पशुपालन और खेती करने आये थे| परन्तु यह बात डी.एन.ए की खोज ने झूठी सिध्द कर दी| माइटोकॉन्ड्रियल डी.एन.ए के अनुसार ब्राह्मणों के घरों में पायी जाने वाली महिलाऍ भी मूलनिवासी हैं| इससे सिध्द होता है कि आक्रमण के उद्देश से आए हुए युरेशियन अपने साथ में महिलाऍ नहीं लाए थे| यह बात सिध्द होती है| जब वे अपने साथ महिलाओं को नहीं लाए इस आधार पर यह सिध्द हो गया कि युरेशियन लोगों का मकसद आक्रमण करना था और भारत के मूलनिवासियों को परास्त करना था| आक्रमणकारी युरेशियन आक्रमण के मकसद से भारत में आये मगर आमने-सामने की लड़ाई में परास्त करने में कामयाब नहीं हुए| इसलिए उन्होंने धोखाधडी, विश्वासघात, अविश्वासस, लालच, विभाजित करना, साम, दाम, दंड, भेद की नीति का सहारा लिया और उसके आधार पर मूलनिवासियों को परास्त करने में कामयाबी हासिल की| ब्राह्मणों के धर्मग्रन्थों में धोखाधडी विश्वासघात के ढेर सारे प्रमाण उपलब्ध है| परास्त किए हुए लोगों को दीर्घकाल तक गुलाम कैसे बनाये रखा जाय यह समस्या आक्रमणकारी युरेशियन के सामने आई और इस तरह से उन्होंने यहॉ के मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया| ऐसा लगता है, बहुसंख्यक मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए और अपने आपको सबसे ऊपर रखने के लिए वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया होगा और मूलनिवासियों के ही लड़ाई किस्म के लोगों को क्षत्रिय का दर्जा देकर अपने से नीचा रखा होगा और व्यापारिक प्रवृत्ति के लोगों को वैश्य का दर्जा दिया होगा और बाकी बहुसंख्यक लोगों को शूद्र बनाकर गुलाम बना देने के लिए वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया होगा| परन्तु गणसंस्था के लोगों ने वर्ण संस्था की निर्मिती को जो गुलाम बनाने वाली व्यवस्था है, उसे अमान्य करना शुरू कर दिया होगा और इससे संघर्ष उत्पन्न हुआ| बाद में लिच्छवी गण के महावीर ने इसका नेत्रत्व किया और शाक्य गण के राजकुमार गौतम बुद्ध ने इस संघर्ष का नेत्रत्व किया होगा, ऐसा दिखाई देता है| इस संघर्ष में सबसे बड़ा रोल बुद्ध ने निभाया| उन्होंने वर्ण व्यवस्था जिस वैचारिक आधार पर खडी की गयी थी, उस वैचारिक आधार को ही चुनौती दी| इस चुनौती के लिए जिस विचार धारा का विकास बुध्द ने किया वह विचारधारा बुद्ध की विचारधारा मानी जाती है और यह त्रिपिटकों के पाली साहित्य में उपलब्ध है| बुद्ध के वर्ण व्यवस्था विरोधी अर्थात ब्राह्मण धर्म विरोधी आंदोलन ने प्राचीन भारत में क्रांति कीब इस क्रांति का बहुत बड़ा परिणाम निकला| ...Read More

जय मूलनिवासी

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